This post is inspired from a incident where sitting yesterday i decided to make a paper boat and to my surprise i had forgotten how to make one and it got me thinking on a few things......
माना के बहुत पीछे रह गया है बचपन का सफर
माना के बहुत पीछे रह गया है बचपन का सफर
पीछे एक नज़र घुमाकर तो देखो कभी
नही लौटता है जाता समय यह तो है जाना
पर बेफिक्र ज़िंदगी थी वह कितनी
हो गए हैं बडे जानते हैं हम
पर बचपन हैं वही
क्या याद है कब बनाई थे कागज़ की कश्ती तुमने
कब दोस्तों के संग मिल की थी शैतानी
कब हुई थी लड़ाई भाई से पतंग पर
कब हुई थी लड़ाई भाई से पतंग पर
कब माँ से से जिद्द की थी गोद के सिरहाने की
कब बारिश मैं नाचे थे ऑंखें मूँद कर
कब सूरज की परवाह किये बिना साइकिल थी चलाई
कब हँसे थे एक गिल्हेरी को देख तुम
कब हाथों मैं मिटटी थी थामी
सोते थे तुम कब मुस्कुराकर
दिन भर की उछाल कूद के बाद
थी ज़िंदगी तब भी वैसई जैसी है आज
बदले हैं हम बचपन नही
कभी फुरसत मिले तो लॉट जाया करो बचपन
बडे होने को तो ज़िंदगी है सारी